महाकालेश्वर मंदिर में वीआईपी वर्ग की विशेष व्यवस्था
विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में विराजित ज्योतिर्लिंग संसार का एक मात्र ज्योतिर्लिंग है, जिसका मुख दक्षिण दिशा की ओर है। दक्षिण दिशा को मृत्यु की दिशा भी माना गया है, मृत्यु के समय को लोक संवाद में काल की संज्ञा दी जाती है, और उसी काल को जीतने वाले महाकाल है। यह मंदिर विश्व भर के लोगो की आस्था का केंद्र हैं। लाखों की संख्या में भक्तगण प्रतिदिन महाकालेश्वर दर्शन के लिए आते हैं। जिसे देखते हुए पिछले कुछ समय से प्रशासनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए गर्भ ग्रह में प्रवेश पर रोक लगाई गई है। लेकिन सत्ता का मद और धन के बल पर आए दिन यहॉ पर नियमों की धज्जियां उड़ायी जाती है।वीआईपी कल्चर के चलते रसूखदार लोग सामाजिक और राजनीतिक पदों का फायदा उठाकर बार-बार नियम तोड़ कर गर्भगृह में प्रवेश पा जाते हैं।
महाकाल के दरबार में देश-दुनिया से लाखों लोग अपना अहंकार मिटाने और भगवान से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगने आते हैं, किंतु जनप्रतिनिधियों, उनसे जुड़े नेताओं या उनके स्वजन का अहंकार बाबा के दरबार में भी नहीं छूटता है। महाकालेश्वर मंदिर की दर्शन व्यवस्था भेदभावपूर्ण है। यहां आम श्रद्धालुओं को 50 फीट दूर से बाबा महाकाल के दर्शन करवाए जाते हैं, जबकि वीआईपी श्रद्धालुओं को गर्भगृह से दर्शन करवा दिया जाता है। महाकाल मंदिर के गर्भगृह में 4 जुलाई 2023 से पुजारी-पुरोहितों के अलावा सभी का प्रवेश प्रतिबंधित है, पर कई वीआईपी जब चाहे गर्भगृह में प्रवेश कर लेते हैं। सोशल मीडिया पर फोटो-वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। इससे यहॉ रोजाना आने वाले लाखों दर्शनार्थियों में भी नाराजगी दिखायी हैं। उनका कहना है कि बाबा सिर्फ वाआईपी के हो कर रह गए हैं।
हमारे देश हर जगह पर वीआईपी संस्कृति हावी हो रही है। वीआईपी संस्कृति के नाम पर भले ही लाल बत्ती का चलन खत्म हो गया हो, लेकिन मंदिरों में इसका प्रभाव आज भी देखने को मिल रहा है। सामाजिक संगठनों के साथ ही तमाम राजनीतिक दलों द्वारा समय-समय पर आवाज उठाई जाती है कि यह वीआईपी संस्कृति ठीक नहीं है, इसे समाप्त किया जाना चाहिए। लेकिन कभी कोई सुधार देखने नहीं मिलता है।
आज के दौर में वीआईपी दर्शन में दादागिरी के साथ धनराशी भी शामिल हो गई है। जो दर्शनार्थी पैसा देकर दर्शन सुविधा लेते हैं, उन्हें अलग कतार या मार्ग से दर्शन करवाए जाते हैं। अब भगवान के दरबार में भी दो तरह की व्यवस्था हो गई है, एक आम जनता के लिए और एक उन लोगों के लिए, जो आर्थिक रूप से सक्षम है। एक आम आदमी जो घंटों लाइन में लगने के बाद मंदिर में प्रवेश करता है, और उसे बाहर से ही दर्शन करने के लिए बाध्य किया जाता है, जैसे वह कोई अछूत हो। लेकिन जो थोड़े भी रसूखदार या वीआईपी है, वह बड़े आराम से मंदिर के गर्भगृह में दर्शन- लाभ लेते हुए नजर आते हैं। एक आम आदमी इसी में खुश हो जाता है कि उसे दूर से ही सही बाबा के दर्शन तो हो गए और वो कुछ ही सेकंड में मंदिर से बाहर निकाल दिया जाता है।
वीआईपी दर्शन, एक ऐसी व्यवस्था है, जो कि प्रभावशाली व्यक्तियों और दानदाताओं के लिए भगवान की उपलब्धता में प्राथमिकता प्रदान करती है, जबकि इसे कई लोग हिंदू धर्म की समावेशी आध्यात्मिक परंपराओं से अलग मानते हैं। वीआईपी दर्शन का हालिया मामला महाकाल मंदिर के गर्भगृह में प्रतिबंध के बावजूद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के बेटे को प्रवेश देने का सामने आया है। प्रतिबंध के बावजूद पूर्व में भी कई वीआईपी लोगों ने गर्भगृह में जाकर बाबा महाकाल के दर्शन किए है। नेता और उनके परिवार के लोग गर्भगृह में पहुंचकर पूजा-अर्चना क्यों करते रहे हैं।
महाकाल महालोक बनने के बाद से उज्जैन काफी चर्चा में आ गया है। इस कारण यहॉ पर जरा-सी अव्यवस्था भी सुर्खियां बन जाती हैं। वीआईपी संस्कृति की यह समस्या ओंकारेश्वर- ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग, मैहर के शारदा मंदिर, दतिया के पीतांबरा शक्तिपीठ से लेकर प्रदेश के हरेक धर्म स्थलों तक में बनी हुई है।
यह है महाकालेश्वर का प्रोटोकॉल
महाकाल के गर्भगृह में सिर्फ पुजारी ही पूजा कर सकते हैं। उनके अलावा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री, राज्यपाल, शंकराचार्य, महामंडलेश्वर के साथ विशिष्टजनों को ही गर्भगृह में जाने की इजाजत है। मंदिर में कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री, सांसद, विधायक बाबा महाकाल के दर्शन करने आते हैं तो उन्हें भी चांदी द्वार से ही पूजन-अर्चन और दर्शन कराए जाने चाहिए। अन्य दर्शनार्थी नंदी हाल के पीछे से ही दर्शन कर सकते हैं।
मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी
वीआईपी दर्शन की व्यवस्था के बारे में मद्रास हाईकोर्ट भी कड़ी टिप्पणी कर चुका है। वर्ष 2022 में एक मामले की सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि मंदिर जैसे धर्म परिसर में वीआईपी संस्कृति से आम लोग निराश है, क्योंकि वीआईपी और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के विशेष दर्शन के कारण आम भक्तों को काफी परेशानी होती है। मंदिर प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वीआईपी दर्शन के दौरान सार्वजनिक दर्शन किसी असुविधा के बिना हो सके। न्यायाधीश ने कहा था कि अगर कोई वीआईपी आम श्रद्धालु के लिए असुविधा पैदा करता है तो वह वीआईपी धार्मिक पाप करता है, जिसे भगवान द्वारा माफ नहीं किया जाएगा।
संत कहते है
वीआईपी दर्शन की व्यवस्था को लेकर प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि आध्यात्मिक अभ्यास भेदभाव से मुक्त रहना चाहिए। सच्ची भक्ति को धन या स्थिति से नहीं मापा जा सकता है। दर्शन का सार भक्त की ईमानदारी और आस्था है, जिसे उसकी सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना समान रूप से महत्व दिया जाना चाहिए। वह पारंपरिक, समावेशी प्रथाओं की वापसी की वकालत करते हैं, जहां हर भक्त को समान पहुंच प्राप्त होती है।
उधर वीआईपी संस्कृति या दर्शन के समर्थकों का तर्क है कि इससे मंदिरों को व्यावहारिक और वित्तीय लाभ होता है। दर्शन शुल्क से प्राप्त राशि मंदिर के रखरखाव, जीर्णोद्धार और विस्तार में योगदान देती है। इस राशि से कई सेवा कार्य भी किए जाते हैं। वीआईपी नियम के समर्थकों का ये तर्क अपने धन का प्रभाव बताने वाला ही है। उनके आस्थावान होने का बिलकुल नहीं, आस्था और श्रद्धा माया और मद से परे समर्पण का भाव लिए होती है। न कि अहंकार भरी होती है।
-देशना जैन, उज्जैन
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